Dropdown Menu

Sep 19, 2018

Acute Earache

*Excerpts from – Some Emergencies of General Practice, D M Borland*

If you go to a patient who is suffering from violent earache, acute stabbing pains in the ear, and tenderness over the mastoid region, when you first look at it from the homeopathic standpoint you are completely lost. After a little experience you find that cases are very satisfactory, you get your relief astonishingly quickly, and often a case which you expect would require incision of the membrane within the next few hours quickly subside and the patient is comfortable when you go back in the evening. That is the sort of thing you should be able to do in these acute conditions.

In cases of acute otitis with violent pains all round the mastoid region there are three or four drugs I want to consider.

Supposing you take the case which has come on very suddenly, with a history of the patient having been out in a very cold north-east wind, he is intensely restless, the pains are very violent, usually burning in character. He is irritable, a bit scared, with all the signs of a rising temperature, and extreme tenderness to touch. With that history after a few doses of ACONITE the acute inflammatory process which is just starting will have entirely disappeared. That is the type that one hopes for, and which one sees very often in winter.

You will get another case- usually in children- where there is not the same definite history of chill, although that may be present, but where the pain is even more intense and where the patient is practically beside himself with pain, will not stay still, is as cross and as irritable as can be, again with extreme tenderness, and you get the impression that nothing that the friends do satisfies him. You give him a few doses of Chamomilla and again the whole inflammatory process will rapidly subside.

The next case has gone a little further; there is much more tenderness over the mastoid region, possibly a little bulging, and the ear begins to look a little more prominent on the affected side. The external ear is very red, often much redder than on the opposite side. There are very acute stabbing pains running into the ear, the condition is a little comforted by hot applications, and the patient is extremely sorry for himself, miserable, wanting to be comforted, probably a little tearful, but without the irritability of chamomilla, and CAPSICUM almost always clears it up.


Collection By

Dr R S Mann


Jul 19, 2018

चिकनगुनिया



Patient Awareness Series: Part 3


चिकनगुनिया एक वायरस जनित रोग है, डेंगी की ही तरह यह भी एडीज मच्छर के काटने से फैलता है. लेकिन डेंगी की तरह, चिकनगुनिया जानलेवा नहीं है.

मच्छर के काटने के 3 से 7 दिन बाद चिकनगुनिया के लक्षण शुरू हो जाते है. 

बुखार व जोड़ों में दर्द, इसके सबसे मुख्य लक्षण हैं. अन्य लक्षणों के रूप में सिरदर्द, जोड़ों में सूजन, माँसपेशियों में दर्द व स्किन पर दाने भी उभर सकते हैं.

चिकनगुनिया जानलेवा तो नहीं है, लेकिन जोड़ों के दर्द व सूजन, कुछ मरीजों में लंबे समय तक बने रह सकते हैं.

ऐसा माना जाता है कि किसी रोगी को एक बार चिकनगुनिया होने पर दोबारा यह नहीं हो सकता.

मच्छरों से बचाव करें, पानी के भराव वाली जगहों को बंद कर दें. 

किसी भी अन्य वायरल इंफेक्शन की तरह, चिकनगुनिया में भी अधिक पानी पियें. आराम करें व चिकित्सक की राय से दवा लें.


डॉ वंदना पाटनी
डॉ रविंद्र सिंह मान

शिखर होम्योपैथिक क्लिनिक
कपिल काम्प्लैक्स, मुखानी
हल्द्वानी

Jul 13, 2018

डेंगी बुखार


डेंगी (Dengue) बुखार 


मानसून की शुरुआत के साथ ही डेंगी (Dengue) बुखार का खतरा सिर पर मंडराने लगता है. दुनिया के 110 से भी ज्यादा देशों में प्रतिवर्ष लाखों लोग इस इंफेक्शन का शिकार होते हैं, व प्रत्येक वर्ष पूरे विश्व में 10,000 से 20,000 मरीजों की मृत्यु डेंगी बुखार की वजह से होती है.

डेंगी एक वायरस जनित बुखार है, इस वायरस की 4 प्रजातियाँ मनुष्य में इंफेक्शन करती हैं. एक बार इंफेक्शन होने पर उस प्रजाति के डेंगी वायरस के प्रति जीवन भर के लिये प्रतिरोधी क्षमता पैदा हो जाती है, यानी डेंगी वायरस की वह प्रजाति अब दोबारा उसी रोगी को बीमार नहीं कर सकती, परन्तु अन्य तीन प्रजातियाँ जरूर इंफेक्शन कर सकती हैं.

डेंगी वायरस, एडीज मच्छर के काटने पर रोगी के शरीर में पहुंचता है. यह मच्छर अक्सर दिन के समय व शरीर के निचले हिस्सों पर काटता है. यदि इकट्ठा हुए पानी का ठीक निस्तारण किया जाए, व बारिश के मौसम में शरीर को पूरा ढकने वाले कपड़े पहनें जायें, तो एडीज मच्छर से बचाव किया जा सकता है.

एडीज मच्छर द्वारा रोगी को काटने व डेंगी वायरस के शरीर में पहुँचने के 3 से 14 दिन बाद ही डेंगी बुखार के लक्षण शुरू होते हैं.

डेंगी के लक्षण:-

तेज बुखार, लगातार बना रहने वाला सिरदर्द, उल्टी, मांसपेशियों व जोड़ों में तेज दर्द व त्वचा (skin) पर निकल आने वाले विशेष दाने.




खून जाँच में प्लेटलेट्स कोशिकाओं की सँख्या में कमी आते जाना व डेंगी के लिये होने वाले खून की जाँच से बीमारी की पहचान हो जाती है.

 डेंगी बुखार के अधिकतर रोगी सामान्य दवाओं व इलाज से ठीक हो जाते हैं. जरूरी नहीं है कि प्रत्येक रोगी में रोग जटिल स्तर (complications) तक पहुँचेगा.


किसी भी दवा का इस्तेमाल चिकित्सक की राय से ही करें. बुखार को कम करने के लिये सिर्फ पैरासिटामोल (एसीटएमिनोफेन) का इस्तेमाल करें.   एस्प्रिन, ब्रूफेन, नप्रोक्सिन नामक दवाओं का इस्तेमाल कतई न करें, डेंगी (Dengue) के इंफेक्शन के दौरान ये दवाएं, शरीर के भीतर रक्तस्राव करवा सकती हैं.

जटिलता के लक्षण:- 

ब्लड प्रेशर का बहुत कम हो जाना. 

प्लेटलेट्स की सँख्या 20000 से भी नीचे गिर जाना.

शरीर के भीतर रक्त स्राव.

प्लाज्मा लीक होना.

शॉक में चले जाना आदि.

लेकिन 80 प्रतिशत रोगियों में डेंगी आम वायरल बुखार की तरह गुजर जाता है, 5 प्रतिशत रोगियों में गम्भीर लक्षणों के साथ आता है, इनमें से भी कुछ ही मरीजों में जटिलता के स्तर तक पहुंचता है

 डेंगी बुखार से रिकवरी होते समय बेहद कमजोरी, अत्याधिक खुजली, हृदय गति का कम होना, व किसी- किसी रोगी में मिर्गी जैसे दौरे का आना एक सामान्य प्रक्रिया है, जिसे लेकर घबराने से बचना चाहिये


डेंगी के वार्निंग साईन क्या हैं?

   - लगातार बढ़ती जा रही उल्टियाँ

   - तेज होता जा रहा पेट दर्द

   - नाक- मुँह से खून आना, या त्वचा व म्यूकोसा के नीचे खून बहने से चकत्ते पड़ना

   - बेहद कमजोरी या बेहद बेचैनी

यदि रोगी में ये लक्षण हों, तो तुरंत अस्पताल में भर्ती करवाएं.

क्या-क्या करें?

किसी भी अन्य वायरल इंफेक्शन की तरह पानी व तरल पदार्थों का सेवन अधिक करें. 

आस- पास मच्छरों को न पनपने देने के लिये पानी के गड्ढों को भर दें.

पूरी आस्तीन के कपड़े पहनें.

मच्छरों को भगाने वाली क्रीम आदि का इस्तेमाल करें.

बुखार आने पर घबरायें नहीं वरन सजगता से लें. 

सही जानकारी के साथ, डेंगी इंफेक्शन को आसानी से हराया जा सकता है.


डॉ वंदना पाटनी
डॉ रविंद्र सिंह मान

शिखर होम्योपैथिक क्लिनिक
कपिल काम्प्लैक्स, मुखानी
हल्द्वानी

Jul 9, 2018

मानसून और मौसमी बीमारियाँ: भाग 1



मानसूनी बारिश निश्चित ही तपती-झुलसती गर्मी में राहत ले कर आई है. लेकिन उमस, गर्मी और सीलन के साथ ही कुछ मौसमी बीमारियों का खतरा भी बढ़ चला है. इस मौसम की खास- खास बीमारियों को जानिये.

1. कॉमन कोल्ड(common cold) यानि खाँसी, जुक़ाम, गले में खराश, बुखार (viral fever):- 

 वैसे तो वायरल फ़ीवर पूरे वर्ष चलता ही रहता है, लेकिन मॉनसून में यह तेजी से फैलता है. जुकाम, छींके, गले में दर्द, खराश, शरीर दर्द, तेज बुखार(104°F तक), साँस लेने में दिक्कत, ये इसके सामान्य लक्षण हैं. 3 से 7 दिन तक बना रह सकता है. हवा के माध्यम से वायरस का इंफेक्शन फैलता है. 

वायरल फीवर व कॉमन कोल्ड करने वाले विंभिन्न प्रकार के 200 से भी ज्यादा वायरस होते हैं. एक बार में रोगी एक से ज्यादा वायरस से पीड़ित हो सकता है.

इंफेक्शन से बचाव के लिये, बारिश में भीगने से बचें, गीले कपड़ों को जल्दी बदल लें, गले में दर्द- खराश के लिये गुनगुने पानी से गरारे करें. हल्दी वाला गर्म दूध इंफेक्शन को कम करता है. वायरल इंफेक्शन होने पर आराम जरूर करें व अधिक पानी पियें.

वायरल फीवर के साथ होने वाली खाँसी, बेहद तकलीफ देय हो सकती है. वायरल फीवर के इलाज में एंटीबायोटिकस का प्रयोग न करें, एंटीबायोटिक्स बैक्टीरिया से होने वाले रोगों में प्रभावकारी होते हैं, वायरस जनित रोगों में इनका कोई भी रोल नहीं है.

 2. मलेरिया :-  

      प्लाज्मोडियम नामक परजीवी, मादा एनोफलिज मच्छर के काटने पर फैलता है, और यही मलेरिया का कारण है. 5 अलग- अलग मलेरिया में से फैलसिपैरम मलेरिया सबसे अधिक घातक किस्म का मलेरिया है. 

ठंड लगने व कंपकँपी के बाद तेज बुखार आना, पसीना आकर बुखार उतरना, मलेरिया का लक्षण है लेकिन जरूरी नहीं कि हर रोगी में मलेरिया बुखार इसी तरह हो. 

बुखार के साथ माँसपेशियों में तेज दर्द, बेहद कमजोरी भी मलेरिया के लक्षण हैं.

मलेरिया का समय से ईलाज न होने पर, खून की भारी कमी(एनीमिया), पीलिया, लिवर व गुर्दे फेल हो सकते हैं.

गर्भवती महिलाओं व 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को मलेरिया से सर्वाधिक नुकसान होता है. 

दुनिया भर में मलेरिया की वजह से होने वाली कुल मौतों में से दो- तिहाई मौतें, 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की होती हैं.

मलेरिया से बचाव के लिये, आस-पास रुके हुये पानी के गड्ढों को खत्म करें, मच्छरदानी, व मच्छर को भगाने वाली क्रीम आदि का इस्तेमाल करें.

डॉ रविंद्र सिंह मान
डॉ वंदना पाटनी

शिखर होम्योपैथिक क्लिनिक
कपिल काम्प्लैक्स
मुखानी
हल्द्वानी (उत्तराखण्ड)

Jul 8, 2018

क्या आप भी विटामिन डी की कमी का शिकार हैं?


यदि आप धूप से बचते हैं, दूध व दूध से बने पदार्थों से एलर्जिक हैं, और शुद्ध शाकाहारी हैं, तो आप विटामिन डी की कमी का शिकार हो सकते हैं. 95 फीसदी भारतीय महिलाएँ विटामिन डी की कमी से जूझ रही हैं.

भारत में एम्स, सफदरजंग और फोर्टिस अस्पताल के डॉक्टरों ने मिलकर ये शोध किया है 

1. उत्तर भारत में रहने वाली तक़रीबन 69 फ़ीसदी महिलाओं में विटामिन-डी की कमी है.

2. तक़रीबन 26 फ़ीसदी महिलाओं में विटामिन-डी, ठीक-ठाक मात्रा में है.

3. केवल 5 फ़ीसदी महिलाओं में ही सही मात्रा में विटामिन-डी पाया गया है.

4. भारतीय पुरुष भी विटामिन डी की कमी के शिकार हैं, लेकिन स्थिति महिलाओं जितनी खराब नहीं है.

 इस भारी कमी के क्या कारण हैं:-

1. स्किन के धूप के सम्पर्क में आने पर विटामिन डी बनता है, भारतीय पहनावे, खास तौर पर महिलाओं के पहनावे, जरूरत से ज्यादा ढंकते हैं, सिर्फ हाथों व चेहरे पर पड़ने वाली धूप काफी नहीं है.

2. मुँह लपेट कर, हाथों पर लंबे दस्ताने पहन कर व चेहरे पर sun screen का इस्तेमाल, स्थिति को और ख़राब करता है.

3. दूध व दूध से बने पदार्थों का कम इस्तेमाल तथा सिर्फ शाकाहारी भोजन का इस्तेमाल.

4. महिलाओं में होने वाले हार्मोनल बदलाव, मीनोपॉज, स्तनपान करवाने वाली महिलाओं में कमी पाई गई है.

5. विटामिन-डी की कमी की बहुत बड़ी वजह खाने में रिफाइंड तेल का इस्तेमाल है. रिफाइंड तेल के इस्तेमाल की वजह से शरीर में कोलेस्ट्रॉल मॉलिक्युल (कण) कम बनते हैं. शरीर में विटामिन-डी बनाने में कोलेस्ट्रॉल के कणों का काफी योगदान होता है. इसकी वजह से विटामिन-डी को शरीर में प्रोसेस करने में दिक्क़त आने लगती है.

विटामिन डी की कमी से खतरे व लक्षण:-

1. हड्डियों में कैल्शियम की कमी, हड्डियों की कमजोरी,आसानी से फ्रेक्चर हो जाना.

2. माँसपेशियों की कमजोरी, दर्द, जोड़ों में सूजन, दर्द.

3. पैरों में सूजन, ज्यादा देर तक खड़े न रह पाना.

4. थोड़ा सा काम करके भी बहुत कमजोरी.

5. ब्रिटेन में हुये अध्ययन के अनुसार उम्रदराज लोगों में पागलपन का खतरा बढ़ता है.

6. ह्रदय रोग व मृत्यु का ख़तरा.

7. बच्चों में अस्थमा.

8. कैंसर.

विटामिन डी की कमी को कैसे पूरा करें?

1. कम कपड़ों में धूप सेवन करें, दिन के किसी भी समय धूप सेवन किया जा सकता है. विटामिन डी की भारी कमी होने पर एक घण्टा रोज धूप में बैठें.

2. अंडे की पीली जर्दी वाला हिस्सा इस्तेमाल करें.

3. कुछ खास मछलियों व कोड लिवर ऑयल का इस्तेमाल कर सकते हैं.

4. भोजन को रिफाइंड की जगह सरसों के तेल, घी आदि में पकायें. 

भारत जैसे देश में जहाँ वर्ष भर, भरपूर धूप उपलब्ध रहती है, वहाँ विटामिन डी की भारी कमी बेहद चिंता का विषय है.

डॉ आर एस मान
शिखर होम्योपैथिक क्लिनिक
कपिल काम्प्लैक्स
मुखानी
हल्द्वानी- उत्तराखंड