1. होम्योपैथी की खोज जर्मन चिकित्सक डा सेमुअल हैनिमैन ने 1796 में की. होम्योपैथी मूलतः इस सिद्धांत पर आधारित है कि दवायें मानव शरीर में जो लक्षण पैदा करती हैं, उन्ही लक्षणों को ठीक करने की क्षमता भी रखती हैं.
2.होम्योपैथिक दवाएँ पेड़, पौधों, जीवों, रासायनिक पदार्थों, विभिन्न विषों, विभिन्न प्राकर्तिक उत्सर्जनों एवं रोग उत्पादों से निर्मित होती हैं. वह प्रत्येक पदार्थ जो मनुष्य शरीर में रोग पैदा करने की क्षमता रखता है, वह दवा के रूप में भी कार्य कर सकता है.
3. भारत में होम्योपैथिक दवाओं का बाज़ार, इस वर्ष 30% बढ़कर, 4,600 करोड़ रूपये सालाना हो जाने कि संभावना है. विश्व में इस वर्ष होम्योपैथी दवाओं की बिक्री बढ़कर 26,300 करोड़ रूपये होने की संभावना है. (Report by The Associated Chambers of Commerce and Industry Of India- ASSOCHAM)
एक अनुमान के अनुसार 2009-10 में भारत में 10 -12 करोड़ मरीजों ने होम्योपैथिक चिकित्सा का उपयोग किया, अगले 2 – 3 वर्षों में ये संख्या बढ़कर 16 करोड़ होने का अनुमान है.
वर्तमान में भारत में 5 लाख रजिस्टर्ड होम्योपैथिक चिकित्सक हैं प्रतिवर्ष 20,000 नए होम्योपैथिक चिकित्सक, चिकित्सा क्षेत्र में जुड़ रहे हैं.
4. होम्योपैथिक दवाओं के प्रयोग सर्वप्रथम स्वस्थ मनुष्यों पर किये जाते हैं एवं उन दवाओं द्वारा उत्पन्न सभी लक्षणों को होम्योपैथिक मेटेरिया मेडिका में व्यवस्थित तरीके से नोट कर लिए जाता है, बाद में किसी भी रोगी के निरीक्षण के बाद उस दवा का प्रयोग किया जाता है जो उसके लक्षणों से सर्वाधिक मेल खाती है.
5. होम्योपैथी अन्य चिकित्सा विज्ञानों से, रोग एवं रोगी के प्रति अपने द्रष्टिकोण को लेकर पूर्णतया भिन्न है. जहां अन्य चिकित्सा पद्दतियां प्रत्येक रोग को ए़क प्रथक इकाई के रूप में मान्यता देती हैं वहीं होम्योपैथी रोग एवं रोगी दोनों को ए़क सम्मिलित्त इकाई के रूप में देखती है, एक उदाहरण से इसे समझना ज्यादा आसान होगा -
मान लीजिए एक रोगी सिरदर्द से पीड़ित है, होम्योपैथी में सिर्फ सिरदर्द के लिए 1150 से भी अधिक दवायें हैं, परन्तु सिर्फ वही दवा रोगी के लिए उपयुक्त होगी जो उसके व्यक्तिगत लक्षणों से पूर्णतया मेल खायेगी. हमें रोग के अन्य तथ्य भी देखने होंगे. रोगी को धूप में जाने पर सिर दर्द शुरू हो जाता है, अब दवायों की संख्या 74 रह जायेगी, मान लीजिए इसी रोगी को सिर दर्द के साथ ही जी मिचलाने लगता है अब दवाएँ सीमित हो कर 36 रह जायेंगी, अब यदि यही रोगी नमक एवं नमकीन चीजें बहुत अधिक खाता है तो दवाओं की संख्या और घटकर मात्र 11 रह जायेगी. इस रोगी के मानसिक एवं भावनात्मक लक्षणों को भी शामिल कर लिया जाये, जैसे यह रोगी टोकने या किसी काम के लिए मना करने पर क्रोधित हो जाता है, तो अब इस रोगी के लिए दवाओं की संख्या घटकर सिर्फ 4 रह जाती है, यदि यह रोगी सवालों के जबाव बहुत ही धीरे धीरे देता हो, उसे जबाव देने के लिए बहुत सोचना पड़ता हो और उसकी इस परिस्थिति का कारण देर रात तक काम करने की उसकी दिनचर्या हो तो आखिर में उसके लिए सिर्फ 1 ही दवा काकुलस इण्डिकस का चुनाव होगा...
इस केस से सम्बन्धित लक्षण देखें -
HEAD – PAIN (1150 Medicine)
HEAD - PAIN - sun, from exposure to
HEAD - PAIN - accompanied by - nausea
GENERALS - FOOD and DRINKS - salt - desire
MIND - ANGER - contradiction; from
MIND - ANSWERING - slowly
HEAD - PAIN - sleep - loss of; from
Cooculus Indicus
इस उदाहरण से यह समझना बहुत आसान है कि होम्योपैथी, सिर्फ रोग ही नहीं बल्कि रोगी के अन्य सभी कारकों, तथ्यों, दिनचर्या, मानसिक व भावनात्मक झुकाव एवं खाने-पीने की आदतों तक को एक ही इकाई के रूप में सम्मिलित करती है.
6. मनुष्य का शरीर खरबों कोशिकाओं, ऊतकों, अंगों एवं तंत्रों से मिल कर बना है, और यह सभी भाग ए़क दूसरे से पूर्णतया भिन्न होते हुए भी आपसी तालमेल एवं ए़क इकाई के रूप में कार्य करते हैं. किसी भी ए़क अंग, ऊतक या तंत्र में आने वाली खराबी शरीर के अन्य अंगों, तंत्रों एवं कोशिकायों को भी प्रभावित करती है. होम्योपैथी इस सिद्धांत को बहुत ही गंभीरता से रोगी के इलाज में काम में लेती है.
7. होम्योपैथ के लिए आवश्यक है कि वह प्रत्येक रोगी के केस की जानकारियाँ बहुत ही विस्तार से एकत्रित करे.
रोगी मुख्य तौर पर अपनी सबसे मुख्य शिकायत ही लेकर आता है, लेकिन उसके लक्षणों को आराम देने वाली एवं बढा देने वाली सभी परिस्थितियां बहुत ही महत्वपूर्ण होती हैं. जैसे सिरदर्द, धूप में जाने पर बढ़ जाना या सिर दबाने या चुन्नी कस कर बाँधने पर आराम मिलना.
इसी प्रकार मुख्य लक्षणों के साथ होने वाले अन्य लक्षण भी बहुत महत्वपूर्ण होते हैं. जैसे सिरदर्द के साथ चक्कर आना या सिरदर्द के साथ पेट में जलन होना या सिरदर्द के साथ धुंधला दिखाई देना.
इसी प्रकार मुख्य लक्षणों का किसी समय, मौसम या ऋतू के साथ जुड़ा होना भी बहुत ही महत्वपूर्ण होता है, जैसे सिरदर्द रोज सुबह शुरू होना या रोज शाम को कपड़े बदलते समय खुजली शुरू होना या आधी रात के बाद साँस लेने में दिक्कत होना आदि. कुछ परेशानियाँ मौसम एवं ऋतू से सम्बन्धित होती हैं जैसे हर बार मौसम बदलने पर खाँसी होना या बारिश के मौसम में जोड़ों में दर्द होना.
रोगी के लक्षणों से सम्बन्धित भावनात्मक, मानसिक लक्षण भी सही दवा के चुनाव में बहुत महत्त्व रखते हैं. एक बच्चा जो बुखार से पीड़ित होने पर लगातार बोलता है या एसिडिटी से वर्षों से पीड़ित रोगी, जो पहले बहुत ही गुस्सैल स्वभाव का था, अब बिलकुल शांत और सज्जनता से पेश आता है, यह मानसिक बदलाव एक होम्योपैथ के लिए सही दवा का चुनाव करने में बहुत महत्वपूर्ण हैं.
इसी प्रकार एक्जिमा से पीड़ित महिला जो अपने रोग के बारे में बात करते करते रोने लगती है, उसकी रो पड़ने की यह भावनात्मक घटना दवा के सही चुनाव में महत्वपूर्ण हो सकती है.
इसी प्रकार खाने पीने की आदतें भी बहुत महत्वपूर्ण कारक हैं. खाने के स्वाद की पसंदगी, किसी खास चीज़ को खाने पर होने वाले लक्षण, किसी प्रकार के भोजन से आराम मिलने की स्थिति भी अन्य लक्षणों की तरह बहुत निर्णायक साबित हो सकती है.
8. होम्योपैथी में ए़क ही दवा विभिन्न रोगों में समान रूप से काम में आ सकती है एवं दूसरी और एक ही रोग से पीड़ित रोगियों को अलग अलग होम्योपैथिक दवाओं की ज़रूरत पड़ सकती है. इसे इस प्रकार समझें कि बेलाडोना नाम की होम्योपैथिक दवा बुखार में भी काम आती है एवं दूसरी तरफ गुर्दे की पथरी के पेशाब की नली (Ureter) में फंसने पर पेट में होने वाले भयंकर दर्द में भी काम आती है, इस प्रकार एक ही होम्योपैथिक दवा शरीर के भिन्न भिन्न अंगों एवं ऊतकों को प्रभावित करने की क्षमता रखती है.
इसी प्रकार मौसम के बदलाव के समय पर होने वाले वायरल फीवर के चार रोगियों को चार अलग अलग दवाओं की जरूरत हो सकती है, एक ही परिवार में खांसी से पीड़ित दो बच्चे जरूरी नहीं कि ए़क ही दवा से ठीक हों, उनके लक्षणों में भिन्नता होने से वे अलग अलग दवाओं से ही ठीक हो सकतें हैं.
9. बहुत बार रोगी ए़क से अधिक रोगों से पीड़ित होते हैं. वे किसी ए़क रोग का ईलाज एलोपैथी या अन्य किसी विधि से करवा रहे होते हैं और उनका रोग पूरी तरह नियंत्रण में भी होता है, परन्तु वे अपनी किसी दूसरी समस्या के लिए होम्योपैथ के पास आते हैं, और अपने पहले वाले रोग और उसके चल रहे ईलाज के बारे में बताना ज़रुरी नहीं समझते और ज़रुरी नहीं कि होम्योपैथ भी आपसे आपके उस रोग के बारे में पूछ पाये, लेकिन मरीज को चाहिए कि वो अपने सभी वर्तमान में चल रही तकलीफों के बारे में विस्तार से बताये अन्यथा बहुत सम्भावना है कि आपको सही दवा देने से होम्योपैथ चूक जाये.
होम्योपैथी में, सभी रोग, चाहे वे कितने भी अलग अलग अंगों और तंत्रों के हों, मूलतः रोगी के प्रतिरोधक तंत्र को प्रभावित करते हैं, और होम्योपैथिक दवायें प्रतिरोधक तंत्र को प्राक्रतिक रूप से सशक्त बना कर ही रोगी को ठीक करती हैं. होम्योपैथिक दवाईयाँ शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को प्राक्रतिक रूप से बढाती हैं जिससे शरीर स्वयं बीमारियों से मुक्त होने में सक्षम हो जाता है
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